छापों में राजनीति का रंग
- Advertisement -
तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के लिए होने वाले मतदान के ठीक पहले डीएमके नेता एमके स्टालिन की बेटी, पार्टी के अन्य नेताओं और उनसे जुड़े लोगों पर आयकर विभाग के छापे पड़े। इससे एक बार फिर यह आरोप लगाया जा रहा है कि केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी अपने राजनीतिक हित साधने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। इस आरोप के जवाब में कहा जा सकता है कि अगर किसी के खिलाफ शिकायतें आती हैं और कोई एजेंसी जांच शुरू करती है तो फिर उस प्रक्रिया को किसी भी बात से क्यों प्रभावित होना चाहिए। अगर बीच में कोई चुनाव वगैरह आ जाते हैं तो क्या सिर्फ इसीलिए वह जांच रोक दी जाए? ‘कानून को अपना काम करने देना चाहिए’ का बहुप्रचारित तर्क इस सवाल का जवाब ना में देता है और सत्तारूढ़ दल आम तौर पर विरोधियों की आलोचना को शांत करने के लिए इसी का इस्तेमाल करते आए हैं। बात तो यह भी सही है कि इन एजेंसियों का दुरुपयोग कोई आज से शुरू नहीं हुआ है। कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के दौरान ही सीबीआई को ‘पिंजरे के तोते’ का ‘तमगा’ मिला था। लेकिन बीजेपी के नेतृत्व में केंद्र में एनडीए सरकार बनने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि यह पुरानी रीत बदलेगी। मगर देखने में यह आया कि ऐसी शिकायतें कम होने के बजाय और बढ़ गईं।